Saturday, October 17, 2020

Dhyaan | ध्यान

विष्णु स्तुति

श्रीहरिविष्णु का ध्यान करें--

शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।।

भावार्थ : जिनकी आकृति अतिशय शांत है, जो शेषनाग की शैया पर शयन किए हुए हैं, जिनकी नाभि में कमल है, जो ‍देवताओं के भी ईश्वर और संपूर्ण जगत के आधार हैं, जो आकाश के सदृश सर्वत्र व्याप्त हैं, नीलमेघ के समान जिनका वर्ण है, अतिशय सुंदर जिनके संपूर्ण अंग हैं, जो योगियों द्वारा ध्यान करके प्राप्त किए जाते हैं, जो संपूर्ण लोकों के स्वामी हैं, जो जन्म-मरण रूप भय का नाश करने वाले हैं, ऐसे लक्ष्मीपति, कमलनेत्र भगवान श्रीविष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।

यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै-
र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा:।
ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो-
यस्तानं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम:।।

भावार्थ : ब्रह्मा, वरुण, इन्द्र, रुद्र और मरुद्‍गण दिव्य स्तोत्रों द्वारा जिनकी स्तुति करते हैं, सामवेद के गाने वाले अंग, पद, क्रम और उपनिषदों के सहित वेदों द्वारा जिनका गान करते हैं, योगीजन ध्यान में स्थित तद्‍गत हुए मन से जिनका दर्शन करते हैं, देवता और असुर गण (कोई भी) जिनके अन्त को नहीं जानते, उन (परमपुरुष नारायण) देव के लिए मेरा नमस्कार है।

No comments:

Labels

01 10 messages 1201-1202 answer Bhagavad Gita CH-1 CH-10 CH-11 CH-12 CH-13 Ch-14 CH-15 CH-16 CH-17 CH-18 CH-2 CH-3 CH-4 CH-5 CH-6 CH-7 CH-8 Ch-9 Characters doubts Epilogue Facts Geeta Gita parenting Principal question Resources Teachings अक्षरब्रह्मयोगः अध्यायः १० अध्यायः ११ अध्यायः १२ अध्यायः १३ अध्यायः १४ अध्यायः १५ अध्यायः १६ अध्यायः १७ अध्यायः २ अध्यायः ३ अध्यायः ४ अध्यायः ५ अध्यायः ६ अध्यायः ७ अध्यायः ८ अध्यायः ९ अष्टादशोऽध्याय: आत्मसंयमयोगः उपसंहार कर्मयोगः कर्मसंन्यासयोगः क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोगः गुणत्रयविभागयोगः ज्ञानकर्मसंन्यासयोगः ज्ञानविज्ञानयोगः दैवासुरसम्पद्विभागयोगः ध्यान निष्कर्ष पात्र पुरुषोत्तमयोगः प्रथमोऽध्यायः भक्तियोगः महाभारत युद्ध मुख्य कारण मोक्षसंन्यासयोग राजविद्याराजगुह्ययोगः विभूतियोगः विश्वरूपदर्शनयोगः श्रद्धात्रयविभागयोगः संसाधन संसार के चक्र साङ्ख्ययोगः